वो उनके आने की आहट ने मुझे चोंका दिया
मुझे आज भी याद है..........................
उस लम्हे को अरसा गुजर गया
अर्थ हीन सब्दों को
पंक्तियों में पिरो कर
फिर बिखेरते .........
फिर पिरोते नए अर्थ की तलाश में
मुझे आज भी याद है ......................
फिर उनसे मुलाकात की चाह ने
मेरे सब्दों को नयी दिसा दी
मुझे आज भी याद है .....................
अब हर रोज
कुछ नया लिखने की कोशिस
अन गिनत सब्दों से भरे मन से
सब्दों को नया अर्थ दे कर
उन्हें पंक्तियों में पिरो कर उन्हें देना
मुझे आज भी याद है....................
वो उनके आने की आहात ने मुझे चोंका दिया
मुझे आज भी याद है.......................
मेरा गाँव
मेरे इस ब्लॉग की सबसे बड़ी मुख्य बात मेरे लिए ये है कि header में जो फोटो है मेरे**( गाँव)** की है .... यहाँ होते हुए भी अपने घर को हर रोज देखता हूँ ..........
Thursday, 24 June 2010
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों.........
गोंला गुठियारों मा व दोड़ा भागी
सागवाड़ों न व काकडी मुंगरी माल्टा की चोरी
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
छाजा डेनडाला मा उ लुका छुप्पी
माँ की खुगली माँ उ बेसुध से जाणू
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
फूलु का मैना मा
सारी-सारियों मा फूलेरू की टोली
वो हल्ला वो हुड़दंग उ खेलाणु-खिलानु
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
थोल आंदा त व मोंज व मस्ती
जेठ का मैना माँ काफुलू का पिछाड़ी
कई माँ सुणों व भामोरों की सैदा
भट्गाणु वों डंडों -डंडों
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
कभी काळी त कभी लाल हिसर
उ घिंगारू , किन्गोद
सारी सारयों वो पोथालों का घ्वाल
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
बस्गाल आंदा ही रोप्निओं की मार
वा सेरों की धान
फलेंडा की बार उ तिमलों कु स्वाद
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों .........
कैमा मांगों उ बचपन का दिन
बाबा की वा प्यारी फटकार
माँ कु लाड़........
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ...............
सागवाड़ों न व काकडी मुंगरी माल्टा की चोरी
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
छाजा डेनडाला मा उ लुका छुप्पी
माँ की खुगली माँ उ बेसुध से जाणू
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
फूलु का मैना मा
सारी-सारियों मा फूलेरू की टोली
वो हल्ला वो हुड़दंग उ खेलाणु-खिलानु
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
थोल आंदा त व मोंज व मस्ती
जेठ का मैना माँ काफुलू का पिछाड़ी
कई माँ सुणों व भामोरों की सैदा
भट्गाणु वों डंडों -डंडों
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
कभी काळी त कभी लाल हिसर
उ घिंगारू , किन्गोद
सारी सारयों वो पोथालों का घ्वाल
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ................
बस्गाल आंदा ही रोप्निओं की मार
वा सेरों की धान
फलेंडा की बार उ तिमलों कु स्वाद
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों .........
कैमा मांगों उ बचपन का दिन
बाबा की वा प्यारी फटकार
माँ कु लाड़........
नि भुल्यों मैं कुछ नि भुल्यों ...............
Subscribe to:
Posts (Atom)