सूर्य की पहली किरण के साथ ही
तुम्हारे क़दमों के पद चिहन भी
ओंस की बूंदों की मानिंद पल भर में ही मिट गए .........
सब कुछ याद बन के रहा गया
चंद लम्हों पहले हम तुम थे .............
चाँदनी रात में रात्रि का तीसरा पहर ........
सूनसान पार्क के बीचों बीच
बहते झरने की कल्कलाहट .........
रात के सन्नाटे को
दफ्न करने की कोसिस में
हमारे बीच की खामोसी को तोड़ती हुई......
कदम से कदम मिला रही थी .......
अर्थ हीन सब्दों के बुलबुले
मन में कभी उठते कभी मिटतेन
न तुम्हारे ओंठ हिलते न आँखे जवाब दे रही थी..
अंतर्मन में एक ध्वंद सा चल रहा था
हम जानते थे हम कभी नहीं मिलेंगे ..........
वक़्त के हर एक लम्हे को समेट
एक दूजे को समर्पित करके...
भविष्य के अंधकार में विलीन होना था हमें
कुछ भी तो शेष नहीं रहा ..
सूर्य की पहली किरण के साथ ही
तुम्हारे क़दमों के पद चिहन
ओंस की बूंदों की मानिंद पल भर में ही मिट गए ......
सब कुछ याद बन के रहा गया ........
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