धुंडने निकला हूँ अपने अक्स को...
दूर सपनो से कहीं आवाज की पहिचान को.....
मन समर्पित कर चूका हूँ
सेस यह जीवन समर्पित भी है अपना
पा के खुद को खोने को तैयार सब कुछ
धुंडने निकला हूँ अपने अक्स को....
दूर सपनो से कहीं आवाज की पहिचान को .......
तय किये है फासले मैंने कई
चल के अन गिनत राहों से.....
आके ठहरा हूँ यहाँ
धुंडने निकला हूँ अपने अक्स को ....
दूर सपनो से कहीं आवाज की पहिचान को ....
ध्रिड संकल्प हूँ एक दिन मिल्लूँगा उससे यहाँ
धुंडने निकला हूँ अपने अक्स को......
दूर सपनो से कहीं आवाज की पहिचान को ......
मंजिलें मुस्किल थी ....
ब्याकुल पाने को मन
रास्ते अन्जान नयें ....
आ मिले हो अब मुझे तुम साथ ले लो
हर कदम पर हर नया एक सक्स है
धुंडने निकला हूँ अपने अक्स को .....
दूर सपनो से कहीं आवाज की पहिचान को ........
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