अभिव्यक्ति: "नीम की डाली "कहानी
मैं ना कहता था दीदी आप के हाथों में जादू है आप की कहानी पढ़ी मन गद-गद हो गया एक मा की निस्वार्थ ममता को आप ने कितन मार्मिक ढंग से चित्रित किया हैऔर साथ ही दो पीढ़ियों के विचारो के अंतर को भी... सही कहा आप ने आज की पीढ़ी रिश्तों को नफ्हा और नुक्सान के तराजू में ही तोलती रहती है भावनाएं ख़तम हो चुकी हें और सब ने प्रेक्टिकल सोचना सुरु कर दिया है सयुंक्त परिवारों का विखंडन इस संकीर्ण मानसिकता का ही परिणाम है
धरमजी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद |
आपने मेरी कहानी अपने ब्लाग पर लगाई है इसीलिए दुगुना धन्यवाद |
इस कहानी का प्रभाव सारे दिन से मन से दूर हो नहीं रहा है। वास्तव में आज रिश्तों को केवल वसूला जाता है, जब माता-पिता की आवश्यकता हुई उन्हें याद कर लिया और जब मतलब निकल गया तब उन्हें भगाने की चिन्ता सताने लगती है। युवा इस कहानी को महत्व दें इससे श्रेष्ठ बात कुछ हो नहीं सकती।
ReplyDeleteदीदी जी
ReplyDeleteअरसा हो गया किताबो को छोड़े आप को पढ़ा तो पुराणी यादें तजा हो गयी धन्यवाद तो आपको दूंगा जो आप मिली |आप को पढता हूँ तो मन को अजीव सी शांति मिलती है | भगवन करे आप इसी तरह लिखती रहें और मैं पढता रहूँ | आप से मिल के ही मेरी भी लिखने की इच्छा जगी है जब भी मोका मिलता है, टूटे फूटे सब्दों को जोड़ने की कोसिस करता हूँ |